तुम जीवन की मझधार हो
जबसे इस मुस्कान का हिस्सा बनी
मेरी जीवन घट की चाह जीने की बड़ी
मां बचपन में चली गई
मातृ सुख की चादर से महरूम रहा
जिस छाया तले अपना मुकाम हासिल किया
उसका ऋण भी ना चुका पाऊंगा
तेरे जीवन में आने से कितना प्यार मिला
तेरी हर इच्छा को पूर्ण नहीं कर पाया
तूने मुझे जीवन मे इंसान बनाया
मां का रूप भी तेरे अंदर पाया
डाट जब रोज सुबह मुझको लगती
बचपन को फिर से जी लेता हूं
सच में इस बलवंत का बल भी फीका
जहां संजना तेरी मुस्कान की छाया
तुम ही जीवन का अंतिम आस और सांस है
एक उद्देश्य एक मां एक पत्नी का स्वरूप हो
सत्य यही कि इस जीवन का आधार हो
– बलवंत सिंह राणा
प्राप्त अशुद्धियां जिन पर विचार करें :–
वर्तनी : मझधार , जब से, बढ़ी ,जिसकी छाया, डांट, लगाती,सांस हो।
तुकांत नहीं है।
विराम चिन्ह नहीं है।
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