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गुरुवार, 11 जनवरी 2024

रघुनाथ पालीवाल

मेरा जीवन तुमसे
कितनी बाते याद आती हैं, 
तस्वीरो सी बन जाती है।
मैं कैसे इन्हे भूलू,दिल को किया समझाऊं। 

कितनी बाते कहने की ,, 
कामना होठों पर जो सहमी सी है। 
इक रोज़ इन्हे सुन लो उषा, क्यो ऐसी गुमसुम हो?

क्यो पूरी हो ना पाई दास्तान?
कैसे आई है ऐसी दूरियां?
दोनो के दिलो में छुपा है जो एक अंजाना सा गम।। 
स्व रचित @ रघुनाथ पालीवाल जोधपुर

प्राप्त अशुद्धियां जिन पर विचार करें :– 
वर्तनी एवं विराम चिन्ह
वचन (एकवचन और बहुवचन के प्रयोग)
इन्हें , भूलूं , नुक्ता, तुकांत नहीं है।
कोई अंश तीन पंक्ति तो कोई चार पंक्ति के है। 

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