ओ मेरे जीवन साथी,
मेरा जीवन तुमसे है।
सांसों की हर सरगम का मेरा,
हर साज तुमसे है।
मेरे हर धुन की संगीत तुम्ही हो,
मेरी आवाज़ तुमसे है।
मेरे यौवन का तुम हो श्रृंगार प्रिए,
खुशियों का हो उपहार प्रिए।
अनमोल रतन हो जीवन की,
मेरे प्रेम की हो राह प्रिए।
मैं तेरे 💐आरती💐 की की थाली,
जय💐 हो तुम मेरे जीवन की।
दीपक बन मैं जलूं बाती संग,
प्रकाशित जीवन तेरा कर जाऊं।
त्याग समर्पण कर नित तुमपर,
जाऊं मैं बलिहारी।
तुमने मेरे जीवन को,
जीने का एक साज दिया।
प्रेम किया मुझसे इतना।
अपना सर्वस्व वार दिया।
मैं नदी की शीतल छांव बनी,
तुम बने सागर सा गहरा।
तुझमें ही समाहित होकर मैं।
स्त्री सम्पूर्ण कहलाई।
जीवन के हर मोड़ पर,
तेरे साथ मैं क़दम बढ़ाई।
चाहे कोई भी आया मौसम,
हाथों में तेरे हाथ रहा।
कांटों से भरी पगडंडियों पर,
पिया तुम्हारा साथ रहा।
गुलशन में फूल लगाकर हमने,
संग बगिया को गुलजार किया।
जो सपने देखे थे मिलकर,
उनको एक संसार दिया।
हर पल रखते ख्याल दिल से,
एक दूजे से ना सवाल किया।
जमाना भी देखकर हमें रहता परेशान,
कैसे हमने एक-दूजे से बेइंतहा प्यार किया।
आरती पांडेय ✍️
स्वरचित मौलिक कविता
दिनांक - 2/1/24
उत्तर प्रदेश जिला मऊ
प्राप्त अशुद्धियां जिन पर विचार करें:–
वर्तनी : तुम्हीं, प्रिये, आवाज, कदम, प्रश्न चिह्न।
की की दो बार है।
दीपक बन मैं जलूं बाती संग,
प्रकाशित जीवन तेरा कर जाऊं। भाव देखें
बहुत खूबसूरत लिखा है
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