उपर से ही बनकर आया मिलन का यह संजोग।
मिलना था तो मिल ही गए ना, शीतल संग आलोक।
तुमने जीवन पथ पर थामा जो हाथ मेरा।
घनी रात आलोक का जीवन शीतल ने किया सवेरा।।
घर बाबा का छोड़ के, तुम जो मेरे अंगना आई।
समझ-बूझ से सब जिम्मेदारी तुमने खूब निभाई।।
छम छम करती पायल तेरी, खन खन करते कंगना।
इस बगिया में दो फूल खिले महका मेरा घर अंगना।।
चलना सीख रही बिटिया जब खुद हम तुम तक आई।
आज पैरों पर खड़ी हो रही, रंग तेरी मेहनत ही लाई।।
देखो !जीवन पथ पर चलते चलते बीते कितने साल।
इसी साल है 'सिल्वर जुबली' क्यूं ना करे धमाल।।
तुम शमां सी शीतल मैं परवाना आलोक।
बस खुशियां ही खुशियां बरसे, हो ना कोई शोक।।
प्रीत ,मीत तुम ही हो शीतल, सारी दुनिया तुमसे है।
लो !आलोक ने लिखकर दे दिया मेरी दुनिया तुम से है।।
© आलोक अजनबी
प्राप्त अशुद्धियां जिन पर विचार करें :
वर्तनी शुद्ध नहीं है ,
विराम चिन्ह ठीक करे।
भाव ठीक है पर विस्मय बोधक चिह्न व्यर्थ है।
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