मैं मधु.. तू मेरी शाला..
मैं महफिल.. तू मेरी हाला..
अंधकारमय जीवन में,
कदम कदम पर..
हमेशा किया उजाला।
वस्तविकता के संघर्ष में,
प्रिये मेरी प्रेरणा तू !
ओम हृदय बसी चुभन- पीड़ा की,
पुष्प सम कोमल, वेदना हरणा तू !
जीवन की तूही सफलता-दुशाला!
जीवन के उतार चढ़ाव में,
हर मोड, हर पड़ाव में..
बन जाती हो..
कोई नसीहत,
ओ मेरी पाठशाला!
तू धीरज, तू अचरज
तू शिद्दत, तू शिरकत
तू मोहब्बत, तू उल्फत
तुझी से बन- बिगड़ रहा
जीवन का खेला!
मैं प्यास, तू जल
मैं भूक, तू निवाला
मैं घाव, तू मरहम,
अब तो..
तूही आँचल माँ वाला!
- ओमप्रकाश सारडा, पुणे
"सलिल"
प्राप्त अशुद्धियां जिन पर विचार करें :–
वर्तनी एवं विराम चिन्ह
मोड = मोड़
भूक = भूख
खेला शब्द में तुकांत भिन्नता है।
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