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बुधवार, 10 जनवरी 2024

ओम प्रकाश सारडा जी

"ओम-पुष्प"
मैं मधु.. तू मेरी शाला.. 
मैं महफिल.. तू मेरी हाला.. 
अंधकारमय जीवन में,
कदम कदम पर.. 
हमेशा किया उजाला। 

वस्तविकता के संघर्ष में, 
प्रिये मेरी प्रेरणा तू ! 
ओम हृदय बसी चुभन- पीड़ा की, 
पुष्प सम कोमल, वेदना हरणा तू ! 
जीवन की तूही सफलता-दुशाला! 

जीवन के उतार चढ़ाव में, 
हर मोड, हर पड़ाव में.. 
बन जाती हो..
कोई नसीहत, 
ओ मेरी पाठशाला! 

तू धीरज, तू अचरज
तू शिद्दत, तू शिरकत
तू मोहब्बत, तू उल्फत
तुझी से बन- बिगड़ रहा 
जीवन का खेला! 

मैं प्यास, तू जल
मैं भूक, तू निवाला
मैं घाव, तू मरहम, 
अब तो.. 
तूही आँचल माँ वाला! 

- ओमप्रकाश सारडा, पुणे
"सलिल"

प्राप्त अशुद्धियां जिन पर विचार करें :– 
वर्तनी एवं विराम चिन्ह
मोड = मोड़
भूक = भूख
खेला शब्द में तुकांत भिन्नता है।

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